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Showing posts from September, 2022

सासाराम में सम्राट अशोक के लघु शिलालेख के ऊपर मजार।

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सासाराम में सम्राट अशोक का लघु शिलालेख है। नवंबर 1875 में एलेक्जेंडर कनिंघम अपनी बीच यात्रा छोड़ कर इसे देखने के लिए सासाराम लौटे थे। गुलाम भारत के ब्रिटिश सरकार ने इसके महत्व को समझते हुए इसे संरक्षित कर लिया था। लेकिन आजाद भारत में यह शिलालेख ताले में कैद है। कुछे लोगों ने इसे मजार घोषित कर दिया है। पुरातत्व विभाग बरसों से ताला खोले जाने के लिए जिलाधिकारी को पत्र दे रहा है। मगर आज भी यह शिलालेख कैद है। सम्राट अशोक से पहले मजार जैसा कोई स्मारक नहीं था। इसलिए भारत सरकार और बिहार सरकार सम्राट अशोक की इस विरासत को फौरन मुक्त कराए।

जाना था पूरब और जा रहे थे पश्चिम तो रिजल्ट आता कैसे?

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जाना था पूरब और जा रहे थे पश्चिम तो रिजल्ट आता कैसे? था अशोक स्तंभ और बताया गया भीम की लाठी तो पहचानाता कैसे? था अशोक का इतिहास और बताया गया महाभारत का वृत्तांत तो विषय पकड़ाता कैसे? लिखा था प्राकृत में और पढ़ा जा रहा था संस्कृत में तो पढ़ाता कैसे? इसीलिए अशोक के शिलालेखों को पढ़ने में देर हुई। अभी सम्राट अशोक पर पश्चिम के देशों में बड़े पैमाने पर शोध जारी है। अनेक नवीन तथ्य फलक पर आ रहे हैं। इतिहास के झूठे ठिकानों पर छापा मारती किंडल पर आ गई पुस्तक - " सम्राट अशोक का सही इतिहास "। छापामारी में अनेक नकली और मिलावटी तथ्य बरामद हुए हैं।

सच्चा शेर, सच्चा महापुरुष ललई सिंह यादव जी जिन्होंने राम को ही चुनोती दे डाली।

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ललई सिंह यादव जिसने राम को ही चुनोती दे डाली और जीत भी हासिल कर ली, सच्चा शेर, सच्चा महापुरुष ललई सिंह यादव थे। जिन्होंने कोर्ट में सिद्ध कर दिया कि रामायण ( राम ) काल्पनिक ग्रंथ है । उन्होंने इतिहास को ठीक से समझा और डॉ . बाबासाहेब आंबेडकर से प्रेरणा ली और सभी SC , ST , OBC , का मार्गदर्शन किया । इसलिए ब्राम्हणवादी लोग ललई सिंह यादव के नाम से जलते हैं ।  मनुवाद - पाखण्डवाद - अंधविश्वास की जडे हिलाने वाले उत्तर भारत के पेरियार के नाम से विख्यात ललई सिंह यादव जी है। ललई सिंह यादव जी को कोटि कोटि नमन करता हूं।